Himachal Pradesh govt. has allocated a huge sum for implementing HP Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana (PK3Y). Through this प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना, the state govt. wants to promote zero budget natural farming practices across the state. In this article, we will tell you about the complete details of Prakritik Kheti Khushhaal Kissan Yojana including target, benefits, objectives among others.
Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana in Himachal Pradesh is going to result in promotion of natural farming. HP govt. will implement this PK3Y scheme in FY 2022-23 to make Himachal Pradesh a chemical free state. Previously, the state govt. has announced this Prakritik Kheti Khushhaal Kissan Yojana (PK3Y) in the annual Himachal Pradesh Budget 2018-19.
Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana in HP Budget 2022-23
Finance Minister while presenting HP Budget 2022-23 mentioned that “At the time of presenting 2018-19 budget, I had announced the start of Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana (PK3Y). Results of this scheme are quite encouraging. Hon’ble Prime Minister, Sh. Narendra Modi Ji, while addressing the National Conclave on Natural Farming in Gujarat on 16th December, 2022, called upon the farmers of the country to adopt Natural Farming and follow the example of Himachal. In the Union Budget 2022-23, approximately Rs.1 thousand 500 crore has been proposed to promote natural farming. Himachal Pradesh is the 1st State to promote Natural Farming in the Government sector. Himachal Pradesh is marching ahead to become a Chemical Free State.”
Target of Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana
Following targets are proposed for the next year under Prakritik Kheti Khushal Kisan Yojana:-
- 50 thousand acres land will be brought under Natural Farming by the end of 2022-23.
- At least one model of Natural Farming will be developed in all the 3 thousand 615 Gram Panchayats of the State. This will help train and motivate farmers of adjoining areas.
- At least 100 villages will be developed as Natural Farming villages as per Government of India standards.
- Farmers engaged in Natural Farming will be registered and out of these, best 50 thousand farmers will be certified as Natural Farmers. The information on Natural Farming will be made available in public domain by developing a dynamic Online Web portal.
- Two dedicated Natural Farming produce Mandis will be opened in the State and 10 other Mandis will have dedicated space to sell Natural Farming produce.
- Sale counters of Natural Farming will be set up at Delhi and selected places in the State, for the first time.
- Finance minister said – आओ मिलकर मुट्ठी बाँधें, धरती का श्रृंगार करें। खेतों में हरियाली रोपें, समृद्धि का संचार करें।
Agriculture Department would organize mass awareness programmes on natural farming involving suitable resource persons. Large group of farmers would be invited to attend the programme. State and District Unit would organize kisan goshthis at district and block level to educate farmers about natural farming. Universities would also organize programme on natural farming awareness in their respective campus.
हिमाचल प्रदेश में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की अवधारणा
कृषि एवं बागवानी में बेहतर पैदावार पाने के लिए मंहगे खरपतवारों और कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि लागत में बेतहाशा बढोतरी हो रही है। कृषि लागत बढने के साथ किसानों की आय घटती जा रही है। जिसके चलते लाखों किसान खेती-बाड़ी को छोड़कर शहरों की तरफ रोजगार पाने के लिए रूख कर रहे हैं। कृषि-बागवानी में रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग बढने से मानव स्वास्य के साथ पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। किसानों में खेती-बाड़ी के प्रति रूचि को बढाने और कृषि लागत को कम कर उनकी आर्थिक स्थिति को बढाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना को लागू कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया है।
9 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस योजना की घोषणा अपने बजट भाषण में की और इसके लिए 25 करोड़ का बजट प्रावधान भी किया गया। योजना को लागू करने के लिए महाराष्ट्र के कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर की कृषि विधि को प्रदेश के हरेक किसान तक पहुंचाने के लिए उनके नाम से 14 मई 2018 को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति को प्रदेश में शुरू है। इसे लागू करने के साथ ही हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती को अपनाने वाला दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले आंध्र प्रदेश में जीरो बजट नेचुरल फॅार्मिंग को शुरू किया गया है।
गौर रहे कि कृषि बागवानी एवं इससे संबंद्ध क्षेत्र हिमाचल प्रदेश की सकल घरेलू आय में 10 प्रतिशत का योगदान एवं 69 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। प्रदेश में कुल 9.61 लाख किसान परिवार 9.55 लाख हैक्टेयर भूमि पर खेती कर रहे हैं, जिसमें केवल 18 फिसदी ही सिंचित क्षेत्र है। ऐसे में सरकार ने प्रदेश के सभी किसानों को वर्ष 2022 तक प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है ताकि किसानों की आय बढने के साथ प्रदेश की सकल घरेलू आय में भी बढोतरी हो सके।
किसानों के लिए प्रशिक्षण
किसानों और विस्तार अधिकारियों में क्षमता विकास के लिए विकास खण्ड, जिला और राज्य स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाऐ जा रहें है। इसके लिए आत्मा के अंर्तगत अनुमोदित दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त किसानों व प्रसार अधिकारियों के लिए प्राकृतिक खेती क्षे़त्रों के भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें
खेतों से ही सारी वस्तुएं प्रयोग में लाना
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती, खेत से पैदा होने वाली वस्तुओं के प्रयोग पर बल और बाहर से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का प्रयोग न करने की वकालत करती है। खेती में प्रयोग होने वाली बुनयादी वस्तुओं के निर्माण में स्वदेशी गाय के मुत्र और गोबर का प्रयोग किया जाएगा। खेतों के लिए जरूरी आदान बनाने में किसानों को सुविधा हो इसके लिए ड्रम और टैंक के लिए 75 फीसदी आर्थिक सहायता दी जाएगी। 2 बीघा से कम जमीन वाले किसानों को 200 लीटर क्षमता वाला 1 ड्रम, 2 से 5 बीघा जमीन वाले किसानों के लिए 2 ड्रम और 5 बीघा से ऊपर जमीन वाले किसान 3 ड्रम पाने के लिए पात्र होगें। किसान बीटीटी संयोजक की अनुमति से स्ंवय ही ड्रम और टैंक खरीद सकेंगे। इसके लिए उन्हे बीटीटी संयोजक के पास अपने आवेदन जमा करवाने होगें। जहां बीटीएम और एटीएम उन्हें सत्यापित करेगा इसके बाद बीटीटी संयोजक, आत्मा की प्रक्रिया के अनुसार प्रोत्साहन राशि जारी करेगा। इसके लिए केवल सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से जुड़े किसान ही पात्र होगें व समूह में मिलकर काम करने वाले किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी।
गोशाला का सुधार
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की अवधारणा में स्वदेशी गाय का मूत्र सबसे महत्वपूर्ण है। गौमुत्र के संग्रह की सुविधा के लिए गौशाला को पक्का करने के लिए एक परिवार को अधिकतम 80 फीसदी (अधिकतम 8000) रू0 तक की आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान है। गौशाला को पक्का करने के लिए बीटीटी संयोजक अनुमति प्रदान करेगा और किसान प्रतिपूर्ति के लिए सामाग्री, श्रम और लागत के बिल जमा करेगा। स्वदेशी नस्ल की गाय रखने वाले किसान ही प्रोत्साहन राशि प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे। बीटीटी संयोजक किसान प्रोत्साहन राशि जारी करेंगे।
प्राकृतिक खेती संसाधन भण्डार
गांव में सभी किसानों के पास स्थानीय गाय नहीं हो सकती है ऐसे में किसानां की सुविधा के लिए संसाधन भण्डार को चलाने के लिए एकमुश्त 50000 रू0 की सहायता दी जाएगी। इसमें पैकेजिंग सामाग्री, गौशाला का सुधार, आवश्यतानुसार ड्रम और अन्य सामाग्री को भी शामिल किया जाएगा। यह भण्डार कम कीमतों पर जरूरतमंद किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। केवल एक गांव के एक किसान को ही संसाधन भण्डार के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। एटीएम और बीटीएम की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को पीडी, डीपीडी, एसएमएस और बीटीटी संयोजक वाली कमेटी मंजूरी देगी। प्रोत्साहन राशि 3 साल की अवधि के भीतर प्रयोग की जा सकती है।
बीटीटी संयोजक की अनुमति से किसान और उनके समूह अपने स्तर पर बुनियादी ढांचे तैयार कर सकते हैं। बीटीटी संयोजक, बीटीएम/एटीएम के बिलों को सत्यापित करवाने के बाद प्रोत्साहन राशि जारी कर सकता है। आत्मा किसी भी प्रकार के बुनियादी ढांचे और वस्तुओं की खरीद नहीं करेगा लेकिन वे किसानों की बुनियादी ढांचे को तैयार करने की व्यवस्था मे सहायता कर सकता है।
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना
हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत लागू करने का निर्णय लिया है ताकि किसानों के व्यापक और दीर्घकालिक कल्याण और समृद्धि के लिए खेती की लागत को कम करने और आय को बढाने के साथ, जलवायु के प्रतिकूल प्रभाव से कृषि और किसानों को बचाया जा सके। हिमाचल के माननीय मुख्यमंत्री द्वारा इस योजना की घोषणा की गई है। वर्ष 2018-19 के बजट भाषण में इस योजना के लिए वित्तीयवर्ष 2018-19 के लिए 25 करोड़ रूपए के बजट का प्रावधान किया गया है।
प्राकृतिक खेती संसाधन भण्डार
प्रकृति के साथ सद्भाव बनाते हुए किसान की आय को बढाने के लिए सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती प्रणाली को अपनाना। यह खासकर छोटे और सीमांत किसानों के अल्पकालिक और दीर्घकालिक कल्याण को सुनिश्चित करेगी।
प्राकृतिक खेती का उद्देश्य
इसमें सभी विकास खंडों और सभी जिलों में फैले सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों को जोड़ा जाएगा। इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं :-
- प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर मिश्रित खेती को बढ़ावा देना।
- खेती की लागत को कम करना और खेती को एक स्थायी व्यवहारिक आजीविका विकल्प बनाना।
- मिट्टी की उर्वरता, सांध्रता, पानी के रिसाव को बनाए रखना और मिट्टी के सूक्ष्म जीवों और वनस्पति में सुधार करना।
- रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित करना।
- विभिन्न फसलों के लिए उत्पादन सिफारिशें तैयार करना।
- पर्यावरण और भू-जल प्रदूषण को कम करना।
प्राकृतिक खेती के बारे में कृषि समुदाय और समाज के बीच जागरूकता पैदा करना। राज्य ने चालू वित्त वर्ष के दौरान इस कार्यक्रम की शुरुआत की है और विभाग ने चयनित किसानों और प्रसार अधिकारियों के लिए दो बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। कृषि, बागवानी, एनजीओ और प्रगतिशील किसानों को प्रशिक्षण और सभी प्रारंभिक तैयारियों के बाद मौजूदा रबी सीजन में इसका कार्यान्वयन किया जा रहा है। इस पूरे कार्यक्रम को राज्य योजना के तहत वित्त पोषित किया गया है और इस कार्यक्रम को जिलों में आतमा के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
प्राकृतिक खेती से होने वाले लाभ
- बाजार पर कोई निर्भरता नहीं। खेती में आवश्यक सभी इनपुट या तो गांव में उपलब्ध हैं या घर पर ही तैयार किए जा सकते हैं।
- रासायन आधारित तत्वों का खेती में प्रयोग न करना। पर्यावरण, मिट्टी, और जल प्रदूषण पर नियंत्रण। यह प्राकृतिक वनस्पतियों और जीवों को संरक्षित करता है।
- मृदा की उर्वरकता, मिट्टी के जैविक पदार्थ और मिट्टी में कार्बन की बहाली करना। इस पद्वति से मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढती है और स्वदेशी गाय के गोबर और मूत्र अधारित सू़त्र ही प्राकृतिक खेती की कुंजी है।
- कीट प्रबंधन के लिए वनस्पतियों और प्राकृतिक संसाधनो के प्रयोग से खेती की लागत को कम किया जा सकता है।
- यह स्थानीय बीजों के उपयोग को बढ़ावा देता है जो स्थानीय वातावरण के अनूकूल हैं।
- अंतरफसल और बहु फसल। कम अवधि वाली अंतरफसल से होने वाली आय मुख्य फसल के लिए किसानों को कार्यशील पूंजी प्रदान करती है और किसानों की आय को बढाती है।
- बहु फसल कृषि मॉडल में पेडों को शामिल करने से सालभर आय मिलने के साथ जोखिम भी कम हो जाता है। इससे निरंतर हरा आवरण मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है। इससे आच्छादन होता है और पानी का नुकसान भी कम हेता है।
- प्राकृतिक खेती में कम पानी की जरूरत। आच्छादन और वाफसा जल उपयोग क्षमता को बढाता है तथा भू-जल आवश्यकताओं को कम करता है।
- प्राकृतिक खेती के तहत फसलें सूखे के दौरान भी लंबे समय तक बेहतर तरीके से खडी रहती हैं और भारी बारिश का सामना भी अच्छे से कर सकती हैं।
- जलवायु परिवर्तन परिप्रेक्ष्य में प्राकृतिक कृषि पद्वति सबसे अधिक जलवायु हितैषी है।
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती क्या है
- शून्य लागत प्राकृतिक खेती में बाहर से कुछ भी नहीं खरीदा जाता है।
- पौधे के विकास के लिए आवश्यक सभी चीजें पौधों के जड़ क्षेत्र के आसपास उपलब्ध हैं। बाहर से कुछ भी डालने की जरूरत नहीं है।
- हमारी मिट्टी समृद्ध है,अन्नपूर्णा है, पोषक तत्वों से भरी हुई है।
- मिट्टी से फसल केवल 1.5 से 2.0 फीसदी तक पोषक तत्व लेती है जबकि शेष 98 से 98.5 फीसदी तक पोषक तत्व हवा, पानी और सौर ऊर्जा से प्राप्त किए जाते हैं।
- हिमाचल प्रदेश में शूल्य लागत प्राकृतिक खेती को लागू करने से संसाधनों के कुशल उपयोग को बढावा मिलेगा और कृषि, बागवानी को टिकाउ बनाने में मदद मिलेगी।
- देश के सामने किसानों की आय को इस तरह से दोगुना करने की चुनौती है जिसमें फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथ मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता हो।
- प्राकृतिक खेती एक व्यावहारिक विधि है और यह न केवल छोटे और सीमांत किसानों को लाभान्वित करेगी, बल्कि मध्यम और बड़े किसान भी इसे बिना किसी कीमत के सफलतापूर्वक अपना सकते हैं।
- मिट्टी की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन के साथ सामजस्य बनाकर रखती है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों, जैविक उर्वरकों और खाद के साथ यह संभव नहीं है।
Source / Reference Link: https://ebudget.hp.nic.in/Aspx/Anonymous/pdf/FS_Eng_2022.pdf
For more details, check the official website of Subhash Palekar Prakritik Kheti Yojana at http://www.spnfhp.nic.in/SPNF/hi-in/index.aspx